आदमी आकांक्षाओं से भरा जीता है तब तक, जब तक कि थोड़ा जागकर देखता नहीं।

आदमी आकांक्षाओं से भरा जीता है तब तक,
जब तक कि थोड़ा जागकर देखता नहीं।
थोड़ी आख के किनारे से
जरा जागकर अपनी जिंदगी को देखो।


थोड़ा सही!
तुम्हें हंसी
आए बिना न रहेगी।
जिंदगी तुम्हें एक
मखौल मालूम होगी,
एक मजाक मालूम होगी।
किसी ने जैसे व्यंग किया।


जागा हुआ व्यक्ति पहला तो अनुभव यह करता है कि
यहां दुख और सुख का
कोई कारण ही नहीं है, सब कल्पना का जाल है।
और जैसे ही यह
समझ में आता है,
एक नया आकाश भीतर
अपने द्वार खोल देता है।


तो मै ही हूं;
न कोई सुख है,
न कोई दुख है।
इस मैं की प्रतीति,
इस स्वयं के
बोध में ही
आनंद है, शांति है।


और उस
जागरण में
तुम्हें न तो यह
पता चलेगा कि
दूसरों ने तुम्हारा  कल्याण किया;
न यह पता चलेगा कि
अकल्याण किया।
दूसरों ने कुछ
किया ही नहीं।
अब और अगर तुम
इस जागरण में
गहरे जाओगे तो
पाओगे कि
दूसरा भी नहीं है।
वह भी तुम्हारी
कल्पना का ही हिस्सा था।
वह भी तुमने माना था।


एस धम्मो सनंतनो ~


ओशो.....♡