*ध्यान क्या है....😌*
स्वयं के साथ होना ध्यान है।
जब तुम एक बार भीतर प्रवेश करते हो, ध्यान शुरू हो जाता है।
ध्यान मतलब अकेले में आनंदित रहने की क्षमता, स्वयं के साथ खुश रहने की क्षमता,
स्वयं के साथ रहने की क्षमता है।
स्वयं के साथ रहना ध्यान है।
ध्यान में किसी दूसरे की कोई आवश्यकता नहीं है; ध्यान, अकेलेपन का आनंद है, अकेलेपन का दुख नहीं...
पूरब का ध्यान वह नहीं है
जो पश्चिम में समझा जाता है।
पश्चिम में ध्यान का मतलब चिंतन है: भगवान पर ध्यान लगाना, सत्य पर ध्यान लगाना, प्रेम पर ध्यान लगाना...
पूरब में ध्यान का अर्थ पूरी तरह से अलग है, पश्चिमी अर्थ के विपरीत।
पूरब में ध्यान का अर्थ मन में कोई तस्वीर नहीं है, मन में कोई भी बात नहीं है।
किसी बात पर ध्यान नहीं देना है।
बल्कि सब-कुछ छोड़ देना है।
नेति-नेति,,, न यह न वह।
ध्यान स्वयं को सभी बातों से खाली करना है। जब तुम्हारे भीतर कोई विचार नहीं घूमता है, तो स्थिरता होती है; वह स्थिरता ध्यान है।
तुम्हारी चेतना की झील में भी एक लहर नहीं उठती, जैसे शांत झील, बिल्कुल स्थिर, वह ध्यान है।
और उस ध्यान में तुम्हें पता चलेगा कि यथार्थ क्या है, तुम्हें पता चलेगा कि प्रेम क्या है, तुम्हें पता चलेगा कि भगवत्ता क्या है....❣
🌹_*ओशो*_ 🌹