*दुनिया में जितने संगठन हैं, सब घृणा पर खड़े हुए हैं।* 🔥🌹🔥

*दुनिया में जितने संगठन हैं, सब घृणा पर खड़े हुए हैं।*
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*रोम रोम रस पीजिए-(साधना-शिविर)-प्रवचन-04*


*और जब भी हम संगठन और समूह बना लेते हैं, तो इस अनुभूति से तो कोई वास्ता नहीं रह जाता, कुछ शब्द होते हैं, जो नारे बन जाते हैं, झंडे बन जाते हैं और उनके आसपास लोग इकट्ठे हो जाते हैं। ये लोग भी कोई एक-दूसरे के प्रति प्रेम से इकट्ठे होते हों तो गलती है। ये दूसरे भी किसी और के प्रति घृणा के कारण इकट्ठे होते हैं।* *दुनिया में जितने संगठन हैं, सब घृणा पर खड़े हुए हैं।*
*हिटलर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है: अगर किसी को संगठित होना हो, तो या तो सचमुच किसी शत्रु को खोज लो या कोई झूठा शत्रु पैदा कर लो। बिना उसके इकट्ठे नहीं हो सकोगे।*
*मुसलमानों को इकट्ठा होना होता है तो वे कहते हैं: इस्लाम खतरे में है, हिंदू इस्लाम को नष्ट करना चाहते हैं। तो मुसलमान इकट्ठे हो जाते हैं।* *हिंदुओं को इकट्ठा होना हो तो वे कहते हैं: हिंदू खतरे में हैं, हिंदू धर्म खतरे में है, मुसलमान हमें दबाना चाहते हैं, ईसाई हमें लूट लेना चाहते हैं। वे इकट्ठे हो जाते हैं।* *अभी हिंदुस्तान पर हमला हो गया चीन का या पाकिस्तान का, तो सारे मुल्क में एक एकता पैदा हो गई और लोग कहने लगे कि मुल्क यह तो, मुल्क इकट्ठा हो गया, यूनिटी पैदा हो गई, हम इकट्ठे हो गए।*
*यह कोई यूनिटी नहीं है।* *यह सिर्फ सामने खड़े हुए दुश्मन के प्रति घृणा है, जिसमें कोई भी इकट्ठा हो जाता है। घृणा में इकट्ठा हो जाना एकदम आसान है, कॉमन एनिमी। हम सब का एक दुश्मन हो, उसको नष्ट करने को हम इकट्ठे हो जाते हैं। ये घृणा के संगठन हैं सब। संगठन मात्र के केंद्र में कहीं घृणा होती है, कहीं शत्रुता होती है और इसलिए हम इकट्ठे हो जाते हैं। धर्मों के जो संगठन हैं वे भी, चाहे वे कितनी ही प्रेम की बात करते हों, लेकिन उनका केंद्र घृणा है। और यही तो कारण है कि प्रेम की बात चलती है और धर्मों के संगठन एक-दूसरे की हत्या में संलग्न होते हैं, एक-दूसरे से लड़ते हैं।*